विषकन्याएं कौन होती है ये कैसे विषकन्या बनती थी The News Reader 365 - THE NEWS READER 365

विषकन्याएं कौन होती है ये कैसे विषकन्या बनती थी The News Reader 365

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खाने में पच सकने लायक जहर देने से लेकर मोहक अदाएं सिखाना, इस खास तरीके से तैयार होती थीं प्राचीनकाल की विषकन्याए 









मनुष्य के जहरीला बनाने की शुरुआत कब से मानी जाती है 

 

 
कहानी शुरू होती है  281 ईसा पूर्व से जब पोंटस (जिसे आज तुर्की या तुर्किए के नाम से जाना जाता है  ) वहा  के जो  राजा थे  मिथ्रिडेट्स V उन्हे  किसी शत्रु  ने खाने में जहर दे दिया।  उनके बाद उनका बेटा  राजा बना मिथ्रिडेट्स VI उसे  डर लागने लगा की काही कोई दुश्मन उन्हे भी उनके पिता की तरह जहर देकर मार ना डाले  । उसने अपने  राजवैद्य की सलाह से एक खतरनाक रास्ता चुना  वो रोज अपने खाने के साथ थोड़ा-थोड़ा जहर भी खाने लगा. इतना कि उसकी  मौत न हो धीरे-धीरे उसने अपने खाने जहर की मात्रा बढ़ाई और राजा का शरीर पूरी तरह से जहरीला हो गया । जहर खाकर जहरीला बनने के इस तरीके को आज भी मिथ्रिडेटिज्म के नाम से जाना जाता है.


भारत में  विषकन्याओं की जानकारी 







भारत  में भी कोई सीक्रेट जानकारी निकलवाने के लिए किसी आकर्षक शख्स (युवती) का इस्तेमाल का  तरीका काफी पुराना माना जाता है ।   सिकंदर जब दुनिया जीतने निकला तो उसके गुरु अरस्तू ने उसे यहां की विषकन्याओं के बारे में सावधान किया था. इसके बाद सिकंदर और  उसकी सेना ने भी ध्यान रखा कि वे कम से कम युवतियों के संपर्क में आएं । अरस्तू की कही हुई बातों पर आधारित सीक्रेट सीक्रेटोरम में गुरु के अपने शिष्य को सचेत करते हुए पत्र हैं जो  मूलतः ग्रीक में लिखी इस बातों का अरबी तक में Sirr al-Asrar नाम से अनुवाद हुआ था.









 कौटिल्य शास्त्र के रचयिता चाणक्य के में कहा जाता है कि उन्होंने कई बार मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के प्राणों की रक्षा की । जिनमें से कुछ हमले विषकन्याओं का प्रयोग करके भी किये गये थे । उन्हीं में से एक  इस प्रकार है –

एक बार नन्द वंश के तात्कालीन सम्राट धनानन्द के मंत्री ने एक षड्यन्त्र किया । उसने छलपूर्वक विजय अभियान से लौट कर आये हुए चन्द्रगुप्त मौर्य के स्वागत में एक विषकन्या को भेजा लेकिन विषकन्या जैसे ही चन्द्रगुप्त के रथ के सामने आई, चाणक्य ने उसे रोक दिया और चन्द्रगुप्त के साथी राजा प्रवर्तक से कहा कि “ इस रूपवती स्त्री को तुम स्वीकार करो ।” राजा प्रवर्तक ने विषकन्या को स्वीकार कर लिया ।

राजा प्रवर्तक युद्ध में चन्द्रगुप्त मौर्य का सहयोगी था । अतः राज्य के नीति नियमों के अनुसार उसे आधे राज्य का स्वामी बनाया जाना था । किन्तु जैसे ही उसने विषकन्या का हाथ पकड़ा, विषकन्या के हाथों में लगा पसीना उसे लग गया । जिससे प्रवर्तक के शरीर में विष फ़ैल गया और वह बीमार पड़ गया । उसने मित्र चन्द्रगुप्त मौर्य को मदद के लिए बुला भेजा । चन्द्रगुप्त ने राज्य के सभी वैद्यों को उसकी चिकित्सा करने के लिए नियुक्त कर दिया । किन्तु जहर शरीर में इतना फ़ैल चुका था कि उसे नहीं बचाया जा सका और अंततः उसकी मृत्यु हो गई ।



इस घटना के बाद चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को भविष्य में विषकन्या और विष के प्रभाव से बचाने के लिए भोजन के साथ अल्प मात्रा में जहर देना शुरू कर दिया  जिससे चन्द्रगुप्त भविष्य में जाने – अनजाने में भी किसी विषकन्या के संपर्क में आये तो उससे सुरक्षित रह सके । 

एक दिन की बात है, जब सम्राट चन्द्रगुप्त भोजन कर रहे थे । तभी वहाँ उनकी गर्भवती महारानी आ गयीं । महाराज को भोजन करते देख महारानी की भी इच्छा हुई कि महाराज के साथ भोजन करें । अपनी इच्छा के अनुसार महारानी ने चन्द्रगुप्त की थाली में से भोजन का एक कौर उठा कर खा लिया । भोजन में मिले हुए विष के प्रभाव से महारानी कुछ ही क्षणों में मूर्छित हो गई । 

राजा चन्द्रगुप्त ने राजवैद्यों को बुलाया और महारानी के अचानक मूर्छित होने की बात बताई । किन्तु कोई भी महारानी के मूर्छित होने का वास्तविक कारण नहीं जानता था । तभी यह बात चाणक्य को पता चली । उन्हें पता था कि रानी मूर्छित क्यों हुई । उन्होंने तुरंत शल्य – चिकित्सकों को बुलाकर रानी के गर्भ में स्थित बालक को निकलवा लिया । बालक तो बच गया लेकिन महारानी की मृत्यु हो गई ।

महारानी के विषैला भोजन करने से बालक पर कोई खास असर नहीं हुआ लेकिन उसके ललाट पर एक नीला निशान बन गया था । माथे पर उभरे नीले निशान के कारण ही चन्द्रगुप्त ने उसका नाम बिन्दुसार रख दिया ।
  

कहीं-कहीं ये भी जिक्र मिलता है कि जब चाणक्य को  किसी परिवार में बच्ची के जन्म की जानकारी मिलती थी तो वो उसकी कुंडली बनवाते थे  अगर ज्योतिष उसके भाग्य में विधवा होने की बात कह दें  उसे विषकन्या बनाने के लिए उसकी ट्रेनिग शुरू कर दी जाती थी  ताकि वे किसी काम आ सके



कैसे तैयार होती थी विषकन्या








 आमतौर पर ये वो बच्चियां होती थीं ये  बच्चियां अच्छी-खासी आकर्षक हुआ करतीं   उन्हें नृत्य-गीत, साहित्य, सजने-संवरने और लुभाने की कला में पारंगत बनाया जाता. पूरा ध्यान रखा जाता कि वो इस तरह तैयार हों कि किसी राजा-महाराजा से बातचीत कर उन्हें लुभा सकें  इसके तहत उनके खाने में रोज जहर की हल्की मात्रा दी जाती  साथ ही  जहर की खुराक बढ़ाई जाती युवा होते-होते वो इतनी जहरीली हो जातीं कि उनके शरीर का स्पर्श भी जानलेवा हो जाया करता. चूंकि विषकन्या का पूरा शरीर यानी उनका थूक, पसीना, खून सब कुछ जहरीला हो चुका होता था, लिहाजा उनसे किसी भी तरह का शारीरिक संबंध जानलेवा साबित होता. उनका इस्तेमाल दूसरे राजाओं या सेनापति को मारने या फिर जरूरी जानकारियां निकलवाने के लिए किया जाता. कई तरह के जहर का मिश्रण भी दिया जाता ताकि बच्ची बेहद घातक बन जाए. इस दौरान बहुत सी बच्चियों की मौत हो जाती, लेकिन प्रयोग चलता रहता था.




 




मनुष्य के जहरीला बनाने का विज्ञान  






जहरीला बनाने की जो प्रक्रिया है उस  प्रक्रिया में ध्यान दिया जाता था कि जहर वही लिया जाता था, जो  बायोलॉजिकली कॉम्पलेक्स कंपाउंड  वाला हो।  एक बार उस जहर के शरीर में जाने के बाद दोबारा जाने पर इम्यून सिस्टम एक्टिव हो जाता है और लिवर  इतना एंजाइम पैदा करता है कि वो पच जाए. इसे इस  तरीके से समझ सकते   सेब में बीज में हाइड्रोजन सायनाइड नामक जहर होता है, लेकिन हमारा शरीर उसे आसानी से पचा पाता है क्योंकि लिवर इसका आदी हो जाता है। 


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